सैम स्टफर्ड ने मां से फ़ोन पर कहा था, "ज़ोर की भूख लगी है माई चिकन-पुलाव बनाओ."
लेकिन नसीब में कुछ और लिखा था, कुछ ही देर बाद दो गोलियों ने उसके शरीर को भेद डाला. एक सैम की ठुड्डी को चीरती हुई सिर की तरफ़ से निकल गई, दूसरी ने पीठ पर अपना निशान छोड़ दिया.
बीते गुरुवार को याद करते हुए मां मैमोनी स्टफर्ड के चेहरे की मांसपेशियां हल्के-हल्के कांपने लगती है, ख़ुद पर क़ाबू पाकर वो कहती हैं, "वो पुलाव-चिकन नहीं खा पाया, उसको अस्पताल ले गए…"
मैमोनी स्टफर्ड बताती हैं, "उस दिन नागरिकता क़ानून के खिलाफ़ लताशिल मैदान में विरोध-प्रदर्शन था, जिसमें मशहूर असमिया गायक ज़ुबिन गर्ग समेत कई बड़े आर्टिस्ट आ रहे थे, तो सैम सुबह-सुबह ही वहां चला गया था, और गोधूलि बेला के समय लौटते हुए उसका फ़ोन आया था."
चश्मदीदों और परिवार वालों के मुताबिक़ गोली तब चली जब सैम एक तरफ़ से घर को जा रहा था और सामने से एक छोटी रैली आ रही थी.
असम में नागरिकता विधेयक के लोकसभा में पेश किए जाने के साथ ही विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया था जिसमें कई तरह की निषेधाज्ञा के बावजूद लोग बड़ी तादाद में शामिल हो रहे थे.
17 साल के सैम स्टफ़र्ड की असम में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ जारी विरोध प्रदर्शनों के दौरान गोली लगने से मौत हो गई. इन्हीं प्रदर्शनों में शामिल दर्जनों लोग छर्रों से आई गंभीर चोटें लिए अस्पतालों में भर्ती हैं.