कभी ओजपूर्ण, बिंदास भाषण और बयानों से रहते थे सुर्खियों में; अब दूर से तौल रहे सियासत का पलड़ा



  • यशवंत सिन्हा: 2014 में लोकसभा का टिकट नहीं मिला, पांच साल में विलुप्त ही हो गए

  • इंदर सिंह नामधारी: 2014 के चुनाव में बेटे के हारने के बाद सक्रिय राजनीति से दूर हो गए


रांची (जीतेंद्र कुमार). झारखंड की राजनीति में कुछ ऐसी हस्तियां रहीं जिन्हें राज्य से पहचान मिली तो उन हस्तियों के कारण झारखंड भी गर्व किया। यशवंत सिन्हा और इंदरसिंह नामधारी इन्हीं हस्तियों में शामिल रहे।


पहली बार रांची से विधानसभा चुनाव जीत कर सिन्हा बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता बने। फिर हजारीबाग संसदीय सीट से लगातार चुनाव जीतते रहे और केंद्र में वित्त, विदेश व अन्य मंत्री बने। इंदरसिंह नामधारी भी झारखंड में उसी कतार के नेताओं में रहे। अविभाजित बिहार के समय से भाजपा के झंडाबरदार रहे नामधारी डालटेनगंज विधानसभा सीट से कई बार चुनाव जीते। दल बदलते हुए भी बिहार में मंत्री और झारखंड के पहले विधानसभा अध्यक्ष भी बने। चतरा से सांसद भी रहे।


यशवंत सिन्हा पांच साल में विलुप्त ही हो गए
यशवंत सिन्हा को 2014 में लोकसभा का टिकट नहीं मिलने से वह भाजपा विरोधी बयानों के लिए चर्चा में अाये। लेकिन भाजपा ने उस समय उनका टिकट काटकर हजारीबाग से उनके ही पुत्र जयंत सिन्हा को उम्मीदवार बना दिया। जयंत सिन्हा जीते। केंद्र में राज्यमंत्री भी बने। फिर भी यशवंत का गुस्सा बीच-बीच में फूटता रहा। इसका खामियाजा उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ा। टिकट तो नहीं ही मिला, भाजपा ने उन्हें कोई सम्मानजनक पद भी नहीं दिया। तब भाजपा के विरोध में प्रचार भी किये। लेकिन 2019 के झारखंड चुनाव में विलुप्त हो गए। इस बार के चुनाव में उनकी सक्रियता बिल्कुल नहीं है।


इंदर सिंह नामधारी सक्रिय राजनीति से धीरे-धीरे कटते गए


नामधारी झारखंड की चुनावी राजनीति की धुरी हुआ करते थे। ओजपूर्ण तथ्यात्मक भाषण उन्हें हमेशा अलग करती थी। चुनावी सभा में अपने भाषण से वह लोगों को मोहने की कूबत रखते थे। 2014 के विधानसभा चुनाव तक वह राजनीति में सक्रिय भी रहे। इस चुनाव में उनके पुत्र दिलीप सिंह नामधारी डालटेनगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे। उनके हारने के बाद वह धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति से अलग होते गए। 2019 के विधानसभा चुनाव में पूरी तरह गायब हो गये। नामधारी का बयान-मेरे पैरों में घुंघरू बंधा दे तो फिर मेरी चाल देख ले... बहुत ही चर्चित रहा था। यह बयान उनका काफी दिनों तक सुर्खियों में रहा।


पॉलिटिक्स से अब कुछ खास लेना-देना नहीं यशवंत सिन्हा ने भास्कर को बताया कि चुनाव से गायब नहीं हैं। चुनाव के बारे में  ऑन रिकार्ड कुछ नहीं बोल रहे हैं। अब पार्टी पॉलिटिक्स से कुछ खास लेना-देना नहीं है। जो महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दे हैं, उसी पर चर्चा करते हैं। मैं पूरी तरह स्वतंत्र हूं। अब मुझ पर कोई दबाव नहीं है।

मैंने राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया... इंदर सिंह नामधारी ने कहा कि अब वह राजनीति से संन्यास ले चुके हैं। इसके अलावा उनके पुत्र की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब हो गयी थी। पत्नी ने कहा कि पुत्र की तबीयत ज्यादा महत्वपूर्ण है। जान है तो जहान है। राजनीति तो होती रहती है, पहले जिंदगी जरूरी है।