क्या मोदी सरकार के पास महंगाई रोकने के उपाय नहीं हैं?


साल 2020 की शुरुआत में भारतीय रेल ने यात्री किराया बढ़ा दिया है. रेल किराया एसी और नॉन एसी दोनों कैटेगरी में बढ़ाया गया है. इसके अलावा बिना सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर के दाम भी बढ़ गए हैं.


अर्थव्यवस्था के विकास की दर लगातार नीचे गिर रही है. आर्थिक सुस्ती के इस माहौल में खाने-पीने की चीज़ें महंगी हो रही हैं. पेट्रोल-डीजल की क़ीमतें भी बढ़ी हैं. सब्जियों और दूध के दामों में बढ़ोतरी देखने को मिली है. प्याज़ की क़ीमतें 100 फ़ीसदी तक बढ़ गई हैं और दूसरी सब्जियों के दाम भी तेज़ी से बढ़े हैं.


बीते साल में महंगाई बेतहाशा बढ़ी है. लेकिन सरकार इसे नियंत्रित नहीं कर पा रही है. सरकार का कहना है कि चीज़ों की खपत कम हो रही है, लेकिन अगर खपत कम है तो क़ीमतें क्यों बढ़ रही हैं?


आलोक पुराणिक के मुताबिक़ ''हाल के आंकड़े देखें तो तीन बातें मोटे तौर पर समझ आती हैं- कंज्यूमर प्राइस इन्फ्लेशन (सीपीआई) नवंबर का आंकड़ा था, इससे खुदरा मूल्य का अंदाज़ा होता है, ये 5.54 था. आरबीआई की निगाह में यह काफ़ी चिंतनीय आंकड़ा है. खाने-पीने की चीज़ों में महंगाई 10 फ़ीसदी से ज़्यादा थी. सब्जियों के दामों की बातों करें तो इनमें 30 फ़ीसदी का इजाफ़ा हुआ है. प्याज की कीमतें 100 से 200 फ़ीसदी तक बढ़ गई हैं.''


उनका मानना है कि खाने पीने की चीज़ों की कीमतें लंबे समय से सस्ती थीं, और खेतिहरों की बुरी हालत के लिए खाने पीने की चीज़ों को ज़िम्मेदार ठहराया जाता था कि इनके दाम नहीं बढ़ते इस वजह से किसानों को ज़्यादा कीमतें नहीं मिल पातीं. वो एक डायमेंशन बार-बार आता था.